objective
- संगठन द्वारा सामूहिक रूप से समाज-सेवा, धर्म और परमार्थ के कार्य। संगठन के माध्यम से ब्राह्मण समाज के प्रत्येक सदस्य के सुख-दुख में शामिल रहना। उनकी यथा संभव मदद करना। प्रत्येक सदस्य के पारिवारिक सुख-शांति, उन्नति प्रगति के लिए प्रभु से सामूहिक प्रार्थना, हवन-पूजन आदि धार्मिक और मांगलिक कार्यों को अनवरत चलाने की व्यवस्था करना ।
- धर्म-कर्म का ध्यान न रखते हुए सारा धन, समय और सामर्थ्य का उपयोग सिर्फ अपने और अपने परिवार को पालने और समृद्ध बनाने के लिए करना, वेद शास्त्रों में बहुत निंदनीय बताया गया है। ईश्वर द्वारा दिया गया धन, समय और सामर्थ्य का कुछ हिस्सा ईश्वरीय कार्य, धर्म और परमार्थ के लिए अवश्य ही निकालना चाहिए। निःस्वार्थ भाव से ऐसा करना अध्यात्मिक व धार्मिक दृष्टि से हम सभी के लिए अनिवार्य है।
- सांसारिक दुख व कष्टों का कारण हमारी अपनी ही दुष्प्रवृत्तियाँ, कर्म और प्रारब्ध हैं। जिनसे बचाने का सामर्थ्य किसी भी प्राणी के पास नहीं है। स्वधर्म और प्रभु की शरण ही सुख-शान्ति का एकमात्र साधन है। प्रभु की कृपा बनी रहे इसके लिए उनके आदेशानुसार हर प्राणी में प्रभु को देखने के संदेश का प्रचार-प्रसार करना। संगठन के माध्यम से सबको ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, और कटुता को समाप्त करके आपसी सद्भावना और सहयोग के लिए प्रेरित करना। ताकि कष्टों और मुसीबतों का निवारण हो सके और सबके ऊपर प्रभु की कृपा बनी रहे।
Self-improvement is the greatest social service.